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कैसे आप अपने किशोर (युवा) को परमेश्वर से और खुद से दूर कर रहे हैं।

by | Nov 26, 2024 | Hindi

मुझे आपके साथ नहीं आना है।” “मुझे अकेले रहने दो (मुझे अपनी प्रायव्हसि चाहिए)।” “मुझे रिश्तेदारों से नहीं मिलना है।” “मुझे चर्च नहीं आना है, सिर्फ इसलिए की आप जाते हो, इसका मतलब यह नहीं की मेरा भी चर्च आना जरुरी है।”) कुछ इस तरह की बातें माता पिता अक्सर अपने किशोर (युवा) बच्चो से सुनते है)। जब बच्चे किशोरावस्था में आते हैं, तो वे थोड़े विद्रोही हो जाते हैं, उनसे बात करना कठिन हो जाता है, और कभी-कभी बिलकुल मुमकिन नहीं लगता है।

शायद आपके किशोर (युवा) बच्चे भी आपके बारे में ऐसा ही सोच रहे हों।

बचपन से किशोरावस्था में बदलाव बहुत संवेदनशील होता है और इसे बहुत  ही प्यार और धैर्य के साथ समझदारी से संभालना जरुरी होता है।)

इस उम्र में बच्चे शारीरिक बदलावों से गुजरते हैं, और साथ ही भावनात्मक और सामाजिक बदलाव भी अनुभव करते हैं।) माता-पिता के रूप में हमें उनका मजबूत सहारा बनना सीखना चाहिए।

जितना वे “इस दुनिया के तरीके से नहीं चलना चाहेंगे” (रोमियों 12:2), उन्हें ऐसा करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा अगर उन्हें घर से समर्थन नहीं मिलेगा।

आप अपने किशोर (युवा) के बारे में क्या सोचते हैं?

मैंने देखा है कि कई माता-पिताओं की ऐसी मानसिकता हो गयी है की किशोरावस्था का समय उनके लिए (माता-पिता के लिए) बहुत तनाव भरा होता है।  “यह पालन-पोषण का हिस्सा है और मुझे इस मुश्किल समय से गुजरना ही होगा।” किसने कहा? मुझे बाइबल में एक ऐसा वचन दिखाएं जो आपके बच्चे के बारे में ऐसा कहता हो।

आजकल माता-पिताओ से यह बहुत ही कम सुनने को मिलता है की “मेरा बच्चा मुझे परेशान नहीं करता।) हम तुरंत पालन-पोषण को परखने लगते हैं और उसमें गलतियाँ ढूँढने लगते हैं। जानते हैं क्यों? क्योंकि संसार की सिखाई हुई इस बात को मान लिया है की किशोरावस्था का समय मुश्किल और परेशानी भरा होता है! और हमारे बच्चे इस समय में आने से पहले ही, हम उनके विद्रोही स्वभाव से निपटने को लेकर चिंता करने लगते हैं।)

इस संसार के सदृश्य न बनो, बल्कि अपने मन के नए हो जाने के द्वारा तुम परिवर्तित होते जाओ, जिससे तुम परमेश्वर की इच्छा को पहचान सको, जो भली, ग्रहणयोग्य और सिद्ध है। रोमियों 12:2

हम यह वचन अपने किशोरों (युवाओं) को हर बार जब वे कुछ गलत करते हैं, चिल्लाकर बताते हैं, है ना? लेकिन यह वचन हमारे लिए भी उतना ही है जितना कि हमारे बच्चों के लिए। अब समय आ गया है कि हम इस दुनिया के सोचने के तरीके से बाहर आएं और अपने मन को उस दिशा में बदलें जो परमेश्वर ने हमारे बच्चों के लिए तय की है। यह हमारी सोच से शुरू होगा। जब हम अपने किशोरों (युवाओं) को परमेश्वर के हाथों में तेज़ बाण के रूप में देखेंगे, तो हम उन्हें परमेश्वर के मार्गों में चलने के लिए मार्गदर्शन कर पाएंगे और उन्हें इस दुनिया में जीने और उसमें न घुलने में मदद कर पाएंगे।

यीशु ने कहा, “मनुष्यों के लिए तो यह असंभव है, परंतु परमेश्वर के लिए सब कुछ संभव है।” मत्ती 19:26, और मसीह यीशु में, माता-पिता, आप विजयी हैं!

परमेश्वर हमें हमारे बच्चों से उनके स्वभाव के अनुसार बात करने के तरीके सिखाएंगे और उन्हें परमेश्वर के उद्देश्य की ओर ले जाएंगे।

शुरू करने में कभी देर नहीं होती। यहां कुछ बातें हैं जो आपकी मदद कर सकती हैं।

 

क्या मेरे बच्चे और मेरे बीच वार्तालाप कम हो रहा है?

हमारे बच्चों के साथ हंसी, खेल और बातें करने के जो अच्छे पल थे, अब वे चुप्पी में बदलते जा रहे हैं। जितना हम उनसे बात करने की कोशिश करते हैं, उतना ही हम उनसे दूर हो जाते हैं। हमारे सवाल उन्हें परेशान कर देते हैं और वे हमसे दूर हो जाते हैं। हमारी जल्दबाज़ी की प्रतिक्रियाए और फैसले उन्हें हमसे बात करने से रोक देते हैं। यह अच्छा है कि हम थोड़ी दूरी बनाए रखें ताकि वे अपनी ज़िन्दगी को समझ सकें, लेकिन अगर यह दूरी तनाव के साथ हो, तो यह धीरे-धीरे रिश्ते को कमजोर कर सकती है और किशोर चुपचाप अपनी गलतियों, शर्म और पाप का असर महसूस करेगा, यह सोचते हुए कि कोई रास्ता नहीं है।

 

क्या मेरे बर्ताव मेरे बच्चे को परमेश्वर से दूर कर रहा है?

माता पिता के रूप में, हम अपने बच्चो के लिए परमेश्वर के प्रेम का आदर्श प्रस्तुत करने के लिए बुलाया गया है। यह जिम्मेदारी सम्मानजनक है, लेकिन कभी-कभी यह हमें मुश्किल लगती है। जब हम गुस्से में होते हैं, या किसी बात पर बहस करते हैं, तो हमारी प्रतिक्रिया परमेश्वर के जैसे प्यार और समझ से दूर होती है, हम अपने किशोरों (युवाओं) से सही तरीके से बात नहीं करते, और इससे बच्चों को लगता है कि परमेश्वर भी वैसा ही व्यवहार करेगा और इससे परमेश्वर का असत्य रूप दिखता है।

यह एक कारण है कि जब हमारे किशोर (युवा) अपनी समस्याओं से जूझते हैं, तो वे परमेश्वर से दूर हो जाते हैं। उन्हें लगता है कि परमेश्वर भी उनकी समस्याओं को उसी तरह से हल करेगा जैसा हम करते हैं। 

माता-पिता को परमेश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए और यह मांगना चाहिए कि वह हमें पश्चातापी ह्रदय दे )। जब हमारे बच्चे हमें गलती करते हुए देखें और हम परमेश्वर से माफी माँगें, तो हम उन्हें परमेश्वर की क्षमा का उदाहरण दिखाते हैं। इससे उन्हें यह समझने में मदद होती है की, उनके पापों की क्षमा और हर एक समस्या का हल उन्हें मिलेगा। माता-पिता को प्यार, अधिकार और साहस के साथ अपने किशोरों (युवाओं) को मसीह पर निर्भर रहना सिखाना चाहिए। हमें हर समय यह ध्यान रखना चाहिए कि हम अपने बच्चों को चोट न पहुँचाएं, ताकि वे हमसे बात कर सकें। अगर कभी हम उन्हें अपनी बातों या कामों से चोट पहुँचाते हैं, तो हमें माफी माँगने के लिए तैयार रहना चाहिए। इससे स्थिति आसान हो जाती है और विश्वास बनता है। हमें हमेशा खुले दिल से सुनना चाहिए और उनकी बातों में रुचि दिखानी चाहिए, न कि अपनी व्यस्तता दिखानी चाहिए।

 

क्या मेरे द्वारा प्रस्तुत मसीही जीवन कर्तव्यपूर्ण है या सुंदर ?

जब हम अपने बच्चों को मसीही जीवन के सत्य सिखाने की कोशिश करते हैं, तो हम मसीह जैसा जीवन जीने की सुंदरता को खो देते हैं। सालों से हम पारंपरिक तरीकों और कर्तव्यपूर्ण जीवन को अपनाते हैं, जो दोषी और शर्मिंदा करने वाले होते हैं।

किशोरों (युवाओं) के लिए स्वतंत्रता सबसे महत्वपूर्ण होती है। हां, उनकी स्वतंत्रता की परिभाषा हमारे लिए परमेश्वर की दी हुई स्वतंत्रता से अलग हो सकती है, लेकिन हम अपनी तरीकों से उन्हें ईसाई जिम्मेदारियों और कर्तव्यों में बांध देते हैं, जो उन्हें दबा देती हैं। आशीर्वाद शर्तों पर आधारित हो जाते हैं और जब वे इन्हें पूरा नहीं कर पाते, तो वे निराश हो जाते हैं और दूर हो जाते हैं।

माता-पिता के रूप में, हमें हर संभव प्रयास करना चाहिए ताकि हमारे बच्चे मसीह के प्रति विश्वासपूर्ण रहें। उन्हें मसीह के अनुसरण किसी कर्त्तव्य के रूप में नहीं बल्कि मसीह के सुंदरता के प्रति प्रेम में होकर करना चाहिए। इसलिए हमारी प्रार्थना यह होनी चाहिए कि हम ऐसा जीवन जिएं जो मसीह की सुंदरता को दिखाता हो और परमेश्वर हमारे हर प्रयास और इच्छा को आशीर्वाद दे, ताकि हम अपने किशोरों को मसीह के प्रेम में स्थिर कर सकें।

“क्योंकि परमेश्वर ही है जो तुम्हारे भीतर अपने भले उद्देश्य के लिए इच्छा रखने और कार्य करने दोनों का प्रभाव डालता है।” – फिलिप्पियों 2:13

चाहे आप माता-पिता के रूप में खुद को असमर्थ और (पूरी तरह) तैयार न महसूस करें, इस पल में याद रखें कि आप अकेले नहीं हो और जब आप अपने मार्गो को प्रभु के प्रति समर्पित करते है और अपने बच्चो को उनकी देखभाल में सौपते है, तो वह मार्गदशन देगा)। आप अकेले नहीं हैं और परमेश्वर आपको मार्गदर्शन करेगा जब आप अपने रास्ते उसे सौंपेंगे और अपने बच्चों को उसके हाथों में देंगे।

अपने किशोर को छोड़िए मत, क्योंकि परमेश्वर ने उसे नहीं छोड़ा है!

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